गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

हर रोज का राही...

रोज - रोज,
हजारों लोग,
मिलते हैं मुझको...
कुछ अनजाने से,
कुछ जाने पहचाने से चहरे,
दिखते हैं मुझको...

कुछ से होती है बस मुलाकात,
और कुछ से होती है बस इशारों में बात...

कुछ होते हैं बातों का खज़ाना,
और कुछ का काम होता है बस खाना...

कुछ तो यूँ ही दिमाग खाते हैं,
और कुछ बेवजह ही पास आते हैं...

फिर भी कुछ लोग हमको बहुत पसंद आते हैं,
और कुछ को तो हम भी बहुत तंगाते  हैं...

कभी - कभी छोटी - छोटी बातों से बात बन जाती है,
तो कभी इशारों इशारों में ही अपनी धाक जम जाती है...

किसी का सफ़र कट जाता है,
तो किसी की लाइफ (LIFE) बन जाती है...
किसी के लिए तो ये रोज रोज की आवाजाही का सफ़र ही,
उसकी वाइफ (WIFE) बन जाती है...

TRAIN से UP - DOWN का ये सफ़र,
हर रोज यूँ ही चलता रहता है...
और ये दिल किसी हमसफ़र की तलाश में,
यूँ ही मचलता रहता है...

के कभी तो,
किसी रोज,
तुझसे हो ही जाएगी मुलाकात "माही"...
के मैं तो हूँ ज़िन्दगी के सफ़र में चलता,
एक
हर रोज का राही...

इंजी० महेश बारमाटे "माही"
16th Nov. 2011

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति......

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  2. ज़िंदगी का दूसरा नाम हे सफर है ...बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  3. सुषमा जी, अनवर जी, पल्लवी जी और सृजना जी... आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया... :))

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  4. @सखी जी, अंजु जी, और अमरेन्द्र जी : आप सभी को मेरी कविता पसंद आई... जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद... :)

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  5. वाह! बहुत खूबसूरत जज्बात उकेरे हैं आपने.
    आभार.

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