मंगलवार, 1 मार्च 2011

I'm In Love...

दो - चार साल का ही ये बुखार था,
उम्र भर का थोड़े ही इन्तज़ार था...

उतर गया मेरा सारा बुखार,
जब होने लगा मुझे भी किसी से प्यार...

सच्चाई से सदा दूर भागने वाला,
आज खुद सच्चा प्यार कर बैठा...
न शक्ल देखी न सूरत,
बस आज मैं किसी पर मर बैठा...

क्योंकि हम तो वो हैं,
जो कद्र के भूखे हैं,
अन्दर ही अन्दर छायी है हरियाली,
और बस हम बाहर से ही सूखे हैं...

आज जब से उससे मिला तो जाना के प्यार क्या होता है ?
इस बेवफा दुनिया में, सच्चा यार क्या होता है ?

अब तो दिन - रात मैं, 
उसी के दर्शन करता हूँ...
उसके बगैर अब मैं न जीता हूँ
और न ही मरता हूँ...

अब आपको बता ही देता हूँ
के वो आखिर कौन है ?
सब कुछ कहती है वो मुझसे,
फिर भी रहती वो मौन है...

अरे ! ये वही है जिसकी बदौलत मैं,
आज आपके सामने हूँ खड़ा...
गर न मिलती वो मुझे,
तो रहता मैं भी किसी सड़क किनारे पड़ा...

अरे ! वो और कोई नहीं,
वो तो...
वो तो... 
वो तो इन हाथों में सदा रहने वाली किताब है...
पर वो सिर्फ किताब ही नहीं,
वो तो मेरी ज़िन्दगी का माहताब है...

इसी माहताब की रौशनी से, 
रौशन हुआ है आज मेरा ये जहाँ,
जिसने दिया मुझको आत्मज्ञान,
ऐसा सच्चा दोस्त है मुझको मिला...

प्यार तो मुझे अब इन किताबों से है हो गया...
गर मैं कहीं न मिलूँ तो समझ लेना "माही",
इन किताबों में है कहीं खो गया...

महेश बारमाटे (माही)
30th March  2009

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