सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

ख़ुशी

ख़ुशी

उन राहों पे तेरे निशाँ ढूंढ रहा था,
हर घड़ी हवाओं से तेरा पता पूछ रहा था।

कुछ ने कहा तू है, यहीं - कहीं,
कुछ ने कहा, के तुझसा कोई है ही नहीं।

तेरे अनजाने अक्श को हर कागज़ पे खींच रहा था,
और तेरे प्यार का सावन इस दिल-ए-रेगिस्तान को हर पल सींच रहा था।

वो अक्श होगा कैसा, जिसे उसने बनाया होगा कहीं?
बस यही सवाल खुदा से हर वक़्त मैं पूछ रहा था।

तुझको पता नहीं, मैंने तेरे इंतजार में कितनी सदियाँ गवाँ दी...
और तुने आकर इक पल में ही मेरे इस जहां को संवार दी।

बहुत शुक्रिया तेरा, जो तू मिल गई आज मुझको ...
वरना मैं तो हर सफ़र में बस तुझको ही तलाश रहा था।

पर इस तलाश में एक प्यास अब भी रह गई बाकि है,
आजा लग जा गले ऐ सनम! क्योंकि इस दिल में अब बस चंद सांस ही बाकि है।

खुदा का भी जाने ये कैसा उसूल है, के हम मिले हम तब जब दिल आखिरी सांस ले रहा था,
फिर भी खुश हूँ के मर रहा हूँ मिलकर उससे, जिसकी खातिर अब तक मैं जी रहा था।

By
Mahesh Barmate
10th Sept. 2009

4 टिप्‍पणियां:

  1. माही जी आपका लेखन अहसास भरा है...
    लिखते रहिये युही

    आपका स्वागत है इस दुनिया में लेखन की

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  2. This is random, but Blogger says that we have the same occupation ("student forever") and I think it's cool that you write Hindi poetry, so I'm just saying hello. I wish I could understand your work, but I'll assume that it is very good :)

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